आज हम आपको रेट्रो रिव्यू में एक ऐसी फिल्म के बारे में बताएंगे जिसने बॉलीवुड में त्याग और न्याय का एक नया आयाम सेट किया। हम बात कर रहे है “कटी पतंग” की जो हिंदी सिनेमा थिएटर में वर्ष 1971 में रिलीज़ हुई तो दर्शकों की भीड़ का सैलाब सा आ गया. आपको बता दें यह राजेश खन्ना का वो ज़माना था जब उनका नाम ही हिट की गारंटी हुआ करता था। और 70 के दशक की ऐसी ही एक फिल्म थी कटी पतंग’। झूठ की बुनियाद पर खड़ी एक औरत की जिंदगी की कहानी जिसने दर्शकों को रुलाया भी और सोचने पर भी मजबूर किया। इस फिल्म का निर्देशन मशहूर निर्देशक शक्ति सामंत ने किया था जिसमें मुख्य कलाकार के रूप में राजेश खन्ना, आशा आशा पारेख, प्रेम चोपड़ा और नासिर हुसैन ने अपने अभिनय का बखूबी प्रदर्शन किया।

आखिर क्यों हुई इतनी हिट-
‘कटी पतंग’ एक भावनात्मक और रहस्यमय प्रेम कहानी है, जो एक ऐसी औरत की ज़िंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो समाज की सच्चाइयों और अपने अतीत से जूझते हुए नया जीवन अपनाने की कोशिश करती है। फिल्म की नायिका मधु (आशा पारेख) अपने प्रेमी कैलाश (प्रेम चोपड़ा) के लिए घरवालों से बगावत करती है और घर छोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली जाती है। लेकिन जब मधु कैलाश को किसी और लड़की के साथ देखती है तब उसे एहसास होता है कि उसके साथ धोखा हुआ, वापस घर आने पर देखती है की उसके चाचा ने बदनामी के डर से आत्महत्या कर ली है। मधु अपनी नई ज़िन्दगी की शुरुआत करने के लिए शहर छोड़ कर जाने का फैसला करती है। जहां ट्रेन यात्रा के दौरान वो अपने बचपन की सहेली पूनम से मिलती है जो अपने पति की मौत के बाद पहली बार अपने ससुराल जा रही होती है की अचानक ट्रेन हादसे का शिकार हो जाती है। पूनम मरने से पहले मधु को अपने बच्चे और अपनी पहचान को सौंप देती है और मधु से कहती है कि वो उसके ससुराल में रहकर उसके बच्चे की देखभाल करे। मजबूरी में मधु एक विधवा बनकर पूनम की पहचान अपना लेती है और उसके ससुराल जाने का फैसला करती है।

मधु अपनी सहेली के बच्चे को लेकर पूनम के ससुराल के लिए निकल पड़ती है। लेकिन रास्ते में चोर उसका पैसे और गहनों से भरा बैग छीन कर भाग जाते हैं। घबराई मधु को एक वन रेंजर कमल (राजेश खन्ना) मदद करता है वह मधु और बच्चे को अपने घर ले आता है। वहां आकर मधु को पता चलता है कि कमल वही है जिससे उसके चाचा उसकी शादी करवाना चाहते थे लेकिन वो घर से भाग गई थी। पछतावे और शर्मिदगी से भरी मधु वहां से भी निकल जाती है। किसी तरह वो पूनम के ससुराल पहुंचती है और वहां खुद को पूनम बताती है। ससुराल वाले मधु को अपने मृत बेटे की पत्नी पूनम मान कर उसका प्यार से स्वागत करते हैं। लेकिन कहानी में एक मोड़ आता है जब उसे पता चलता है कि कमल के पिता (मदन पुरी) और पूनम के ससुरजी दीवान दीनानाथ (नज़ीर हुसैन) के बीच दोस्ती होने के कारण कमल अक्सर वहां आता-जाता रहता है। धीरे-धीरे कमल पूनम उर्फ मधू को प्यार करने लगता है। मधू भी उससे प्यार करती है लेकिन क्योंकि वो पूनम की पहचान के साथ एक विधवा बनकर वहां रह रही है। इसलिए वो कमल के प्यार का जवाब नहीं दे पाती।

फिल्म में मधु का संघर्ष, समाज की सोच, और खुद की सच्चाई से लड़ने की जद्दोजहद को भावनात्मक रूप से दिखाया गया है। उधर मधु का पीछा कर रहा उसका पुराना प्रेमी ब्लैकमेल करने लगता है और उसकी झूठी पहचान का पर्दाफाश करने की धमकी देता है। इसके बाद फिल्म एक रहस्यमय मोड़ लेती है जिसमें हत्या, पुलिस जांच और कोर्ट सीन शामिल हैं। आखिरकार मधु की सच्चाई सामने आती है लेकिन उसका साहस, त्याग और ईमानदारी देखकर लोग उसे माफ कर देते हैं।
‘कटी पतंग’ का क्लाइमेक्स न सिर्फ न्याय दिलाता है बल्कि दर्शकों को यह भी सिखाता है कि एक महिला चाहे कितनी भी मुश्किल में क्यों न हो अगर उसमें हिम्मत हो तो वह अपनी नई पहचान खुद गढ़ सकती है। यह फिल्म अपने समय की सामाजिक सोच पर तीखा वार करती है और विधवा महिलाओं के प्रति समाज के रवैये को चुनौती देती है। राजेश खन्ना और आशा पारेख की अदाकारी, किशोर कुमार के गाए गाने, और आर.डी. बर्मन का संगीत इसे एक क्लासिक फिल्म बनाता है।
संगीत-
आर.डी. बर्मन का जादुई संगीत इस फिल्म की जान है। किशोर कुमार की आवाज़ में “ये शाम मस्तानी”, “प्यार दीवाना होता है” और “न जाने क्यों होता है ये ज़िंदगी के साथ” जैसे गाने आज भी पुराने गानों के प्रेमियों की पहली पसंद हैं।

अवार्ड और सराहना-
आशा पारेख को इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भी ज़बरदस्त कमाई की थी और राजेश खन्ना के सुपरस्टारडम को और भी ऊंचाई दी।
“कटी पतंग” सिर्फ एक इमोशनल ड्रामा नहीं बल्कि उस दौर की महिलाओं की सामाजिक स्थिति और आत्मबल पर भी टिप्पणी थी। शक्ति सामंत की मजबूत कहानी राजेश-आशा की केमिस्ट्री और आर.डी. बर्मन का संगीत इसे एक क्लासिक मास्टरपीस बनाता है। आज के तेज़ रफ्तार सिनेमा के दौर में “कटी पतंग” जैसी फिल्में याद दिलाती हैं कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं होता सिनेमा एक आईना है जो समाज की सच्चाई को दर्शाता है।