“कभी अचानक चलती बातचीत रुक जाए, और गले से अजीब सी ‘हिक’ निकल जाए तो बुजुर्ग कहते हैं, कोई याद कर रहा है। लेकिन क्या वाकई हिचकी किसी की याद का पैगाम है? या ये हमारे शरीर की कोई अंदरूनी चेतावनी? आज हम आपको अपनी इस ख़ास रिपोर्ट में बताएंगे हिचकी की वो सच्चाई, जो विज्ञान कहता है… और वो मान्यताएं जो हमारी परंपराओं में गहराई से बसी हैं।”
मान्यता की कहानी “कोई याद कर रहा है”-
भारत सहित कई देशों में ये मान्यता सदियों से चली आ रही है कि हिचकी तब आती है जब कोई इंसान आपको याद करता है। दादी-नानी की कहानियों में ये सुनना आम है कि “किसी ने दिल से पुकारा होगा, तभी हिचकी आई।” कुछ लोग तो नाम गिनने लगते हैं “मम्मी, पापा, दोस्त, बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड?” और अगर उसी वक्त फोन आ जाए तो मान्यता को और मजबूती मिलती है।

विज्ञान क्या कहता है? शरीर के अंदर की कहानी-
आइए अब आपको लेकर चलते है विज्ञान की दुनिया में डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक हिचकी (Hiccup) दरअसल डायफ्राम की ऐंठन (spasm) की वजह से होती है। डायफ्राम हमारे फेफड़ों के नीचे की एक पतली मांसपेशी होती है, जो सांस लेने में मदद करती है। जब यह अचानक सिकुड़ती है तो हमारे वोकल कॉर्ड्स (गले की आवाज़ वाली झिल्ली) झटके से बंद हो जाते हैं और जो आवाज़ आती है वही ‘हिचकी’ होती है।

हिचकी क्यों आती है?
बहुत तेज़ी से खाना खाने से, मसालेदार खाना, अचानक ठंडी चीज़ पी लेना, गैस्ट्रिक या एसिडिटी, ज्यादा शराब या स्मोकिंग, तनाव या उत्तेजना कभी-कभी ब्रेन या नर्व से जुड़ी बीमारियां भी कारण हो सकता है. यानी ये एक शारीरिक प्रक्रिया है, जो किसी बाहरी याद की वजह से नहीं, आपके अंदर कुछ गड़बड़ी की वजह से होती है।
लेकिन क्या मान्यताओं का कोई फायदा नहीं?
मान्यताओं का एक मनोवैज्ञानिक असर ज़रूर होता है। अगर आपको हिचकी आई और आपने मान लिया कि कोई खास आपको याद कर रहा है तो ये भावना खुशी और सुकून देती है। यह एक तरह का प्लेसबो इफेक्ट है जो मानसिक राहत दे सकता है भले ही इसका वैज्ञानिक आधार न हो।

तो अगली बार जब हिचकी आए तो एक ग्लास पानी पी लें, गहरी सांस लें, या सांस रोक कर कुछ सेकंड रुक जाएं। और अगर कोई याद आए तो उन्हें कॉल ज़रूर कर लें क्योंकि यादें भी सेहत की तरह ही कीमती होती हैं। “हिचकी” एक आवाज़ जो शरीर से निकलती है पर दिल तक असर कर जाती है। वैज्ञानिक कारणों से इनकार नहीं पर भावनाओं की गहराई भी कम नहीं। इसलिए विज्ञान भी मानता है शरीर और मन, दोनों जुड़कर ही इंसान को पूरा बनाते हैं।