एक ऐसी फिल्म जो सिर्फ पर्दे की कहानी नहीं थी, बल्कि पर्दे के पीछे की सच्चाई को भी लेकर आई थी सुर्खियों में। 1981 में जब यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ रिलीज़ हुई, तो दर्शकों को सिर्फ अमिताभ-जया-रेखा की एक्टिंग नहीं, बल्कि उनकी निजी ज़िंदगी की झलक भी महसूस हुई। आज के रेट्रो रिव्यू में बात उसी फिल्म की, जिसने ‘इश्क़’ को भी इल्ज़ाम बना दिया।
सिलसिला की कहानी है एक ऐसे शख्स की जो अपने प्यार और अपने कर्तव्य के बीच फंसा है। अमित मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) को प्यार होता है चंद्रा (रेखा) से लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि वो शादी करता है शांति (जया बच्चन) से। एक तरफ अमित का प्यार दूसरी तरफ परिवार की जिम्मेदारी और इसी खामोश टकराव में जन्म लेता है ‘सिलसिला’।

इस फिल्म को खास बनाती है इसकी रियल-लाइफ कास्टिंग। 80 के दशक में चर्चाओं का बाजार गर्म था कि अमिताभ का रेखा के साथ रिश्ता क्या है? और फिर जब वही तिकड़ी बड़े पर्दे पर एक प्रेम त्रिकोण में नजर आई… तो लोगों ने इसे सिर्फ फिल्म नहीं, हकीकत का आइना माना। यश चोपड़ा ने खुद बाद में माना कि ये फिल्म बनाना सबसे बड़ा जोखिम था।

फिल्म का संगीत-
हर रिश्ता जब अल्फाज़ों में ढलता है… तो गुलज़ार के शब्द और शिव-हरि का संगीत जादू बना देते हैं। ‘देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए’ ‘ये कहां आ गए हम…’ इन गीतों ने मोहब्बत को एक एहसास और विरह को एक खूबसूरत पीड़ा में बदल दिया। आज भी ये गाने रेडियो पर बजे तो पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं।
फिल्म की सफलता और आलोचना-
बॉक्स ऑफिस पर ‘सिलसिला’ ने भले ही बड़ी कमाई न की हो लेकिन इसके इमोशन्स, इसकी ईमानदारी और इसके पीछे की सच्चाई ने इसे कल्ट क्लासिक बना दिया। सिलसिला एक ऐसी फिल्म थी, जो रील और रियल लाइफ के बीच की लकीर को धुंधला कर गई। एक ऐसा सिलसिला, जो आज भी हर रोमांटिक फिल्म प्रेमी के दिल में धड़कता है।