जहां हर कोई वक्त से आगे निकलने की दौड़ में है, वहीं एक नई सोच जन्म ले रही है — ‘स्लो लाइफस्टाइल’ यानी धीमी ज़िंदगी। क्या है ये सोच? और क्यों इसे अपनाने लगे हैं दुनियाभर के लोग? आइए समझते हैं इस खास रिपोर्ट में।
आज की दुनिया भाग रही है ट्रैफिक, डेडलाइन, स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया… हर जगह एक रेस। लेकिन इस रफ्तार में कहीं न कहीं खो गया है सुकून, मानसिक शांति और असली ज़िंदगी का स्वाद।
स्लो लाइफस्टाइल क्या है?
‘स्लो लाइफस्टाइल’ एक ऐसा तरीका है, जिसमें इंसान जान-बूझकर ज़िंदगी को धीमी रफ्तार से जीने का फैसला करता है। सुबह की चाय को वक्त देकर पीना, खाना खाते समय मोबाइल से दूरी बनाना, वीकेंड पर नेचर वॉक करना ये सब इसके हिस्से हैं।

एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
मनोचिकित्सकों का मानना है कि जब आप हर काम को तेज़ी में करते हैं, तो आप जीना भूल जाते हैं। स्लो लाइफस्टाइल आपको अपने अंदर झांकने और हर पल को महसूस करने का मौका देता है।
भारत में बढ़ता ट्रेंड-
भारत में भी अब ये ट्रेंड बढ़ रहा है। लोग ऑफिस छोड़कर पहाड़ों में बस रहे हैं, ऑनलाइन detox ले रहे हैं और ‘स्लो ट्रैवल’ को बढ़ावा दे रहे हैं। खासकर कोरोना महामारी के बाद, लोग ज़िंदगी को नए नज़रिये से देखने लगे हैं।

स्लो का मतलब सुस्त नहीं-
ध्यान रहे, स्लो का मतलब सुस्ती नहीं है। इसका मतलब है “सचेत जीना”, यानी हर चीज़ को समझकर, समय देकर और सुकून के साथ करना।
तो क्या आप भी अपनी तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में थोड़ा ठहराव लाना चाहेंगे? कभी-कभी धीमा चलना भी आपको ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत मंज़िलों तक ले जा सकता है। इस तेज़ भागती ज़िंदगी में अगर आप सुकून की तलाश में हैं, तो शायद जवाब ‘धीमी ज़िंदगी’ में छिपा है सोचिएगा ज़रूर!