मबई। भारतीय सिनेमा के प्रतिभाशाली अभिनेता बलराज साहनी ने अपने समय में एक से बढ़कर एक फिल्में कीं। उनका जन्म 1 मई 1913 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था। बलराज साहनी ने लाहौर विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक और फिर लंदन स्कूलऑफ़ इकनॉमिक्स से पढ़ाई की। बलराज साहनी ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1946 में फिल्म इंसाफ से की। लेकिन उन्हें असली पहचान बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ से मिली, जिसमें उन्होंने एक गरीब किसान की भूमिका निभाई। यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराही गई। बलराज साहनी ने बॉलीवुड को काबुलीवाला, गर्म हवा, हकीकत , वक़्त जैसी सुपरहिट फिल्में दी। बलराज साहनी की अंतिम फिल्म “गर्म हवा” उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई और लोगों ने उसे काफी पसंद किया।
साल 1958 में रिलीज हुई फिल्म ‘घर संसार’ सुपरहिट साबित हुई थी। इस फिल्म में बलराज साहनी की पत्नी का किरदार नरगिस ने निभाया था। वी एम व्यास के निर्देशन में बनी इस फिल्म में राजेन्द्र कुमार और कुमकुम भी मुख्य भूमिकाओं में थे। फिल्म ‘काबुलीवाला’ की कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी काबुलीवाला पर आधारित थी। साल 1961 में रिलीज हुई इस फिल्म में बलराज साहनी ने अब्दुल रहमान खान काबुलीवाला का किरदार निभाया था।
जेल में रहकर की फिल्म ‘हलचल’ की शूटिंग
वहीं 1951 में आई फिल्म ‘हलचल’ में दिलीप कुमार के कहने पर के.आसिफ ने बलराज को जेलर का रोल दिया। बलराज भी अपने रोल को लेकर काफी उत्साहित थे और आसिफ के साथ मुंबई सेंट्रल जेल पहुंचे। तय हुआ कि वे जेलर के साथ कुछ दिन बताएंगे और अपने किरदार के लिए तैयारी करेंगे। इसी दौरान बलराज साहनी ने आजादी के लिए कुछ लोगों के साथ आंदोलन में हिस्सा लिया। फिर उन लोगों पर हिंसा भड़काने के आरोप लगे और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। फिर एक दिन के.आसिफ बलराज से मिलने जेल पहुंचे और साहनी को जेलर ने उन्हें जेल में रहकर शूटिंग करने की इजाजत दी। इसके बाद साहनी रोज सुबह फिल्म की शूटिंग पर जाते और शाम को वापस जेल लौट आते। करीब तीन महीने तक उन्होंने जेल में रहकर ही फिल्म ‘हलचल’ की शूटिंग की थी। बलराज साहनी को 1951 में आई फिल्म हलचल दिलीप कुमार के कहने पर मिली थी।
बलराज साहनी को मिले ये पुरस्कार
वहीं बलराज ने फिल्म ‘गुड़िया’ की हीरोइन दमयंती साहनी से शादी की। लेकिन, महज 26 साल की उम्र में साल 1947 में उनकी पत्नी का निधन हो गया था, जिसके बाद उन्होंने 1951 में दूसरी शादी संतोष चंदधोक से की थी। बलराज तैराकी के भी बड़े शौकीन थे। इसके अलावा वे सामाजिक कार्यों से भी खूब जुड़े रहे। कम्युनिस्ट विचारधारा के बलराज मजदूरों-मेहनतकश लोगों से बड़ा लगाव रखते थे। आपको बता दें कि बलराज साहनी को 1969 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वहीं उनकी अंतिम फिल्म ‘गर्म हवा’ को राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला। 2013 में भारत सरकार ने भारतीय सिनेमा के 100 वर्षों के उपलक्ष्य में उन्हें समर्पित एक डाक टिकट जारी किया।
आत्मकथा ‘मेरा सफर’ में जीवन, संघर्षों और फिल्मी दुनिया के अनुभवों को किया साझा
इसके अलावा बलराज साहनी ने ‘बाज़ी’ (1951) फिल्म के लिए पटकथा लेखन भी किया और पंजाबी साहित्य में भी योगदान दिया। साथ ही ‘प्रीतलड़ी’ पत्रिका में लेख लिखे। 1973 में उन्होंने मुंबई में ‘पंजाबी कला केंद्र’ की स्थापना की। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेरा सफर’ (Balraj Sahni: An Autobiography) लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन, संघर्षों और फिल्मी दुनिया के अनुभवों को साझा किया। उनके पुत्र, अभिनेता परिक्षित साहनी ने भी अपने पिता पर आधारित किताब ‘द नॉन-कॉन्फॉर्मिस्ट: मेमोरीज ऑफ माई फादर बलराज साहनी’ लिखी है। बलराज साहनी का निधन 13 अप्रैल 1973 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से हुआ।