एक फिल्म जो आज भी हर दिल को छू जाती है… एक किरदार जो आज भी जिंदा है… और एक डायलॉग जिसने हिंदी सिनेमा की परिभाषा ही बदल दी। 1971 में आई फिल्म ‘आनंद’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक एहसास थी एक जिंदगी का पाठ थी। चलिए चलते हैं उस दौर में, जब राजेश खन्ना ने मौत को मुस्कुराकर गले लगाया था। साल था 1971 हिंदी सिनेमा अपने सुनहरे दौर में था और तभी आई एक ऐसी फिल्म, जिसने मौत को नहीं, जिंदगी को सेलिब्रेट किया ‘आनंद’
राजेश खन्ना सुपरस्टार लेकिन इस फिल्म में वो सिर्फ हीरो नहीं थे, वो जिंदगी का नाम थे। DAILOUGE लगाना है- “जिंदगी बड़ी होनी चाहिए बाबू मोशाय.. लंबी नहीं!”
ये फिल्म थी एक कैंसर से जूझते शख्स की कहानी, जो मौत से नहीं डरता बल्कि दूसरों की जिंदगी में मुस्कान भरने आता है और इस किरदार को जिया था राजेश खन्ना ने, जिसे आज भी लोग ‘आनंद’ के नाम से याद करते हैं।
फिल्म का निर्देशन किया था ऋषिकेश मुखर्जी ने। सरल, सादगी से भरी और दिल को छू लेने वाली कहानी। साथ में अमिताभ बच्चन डॉ. भास्कर के किरदार में एक गंभीर, इंट्रोवर्ट इंसान, जो आनंद के ज़रिए जीना सीखता है। जहां एक ओर फिल्म ने इमोशन को छुआ, वहीं इसका म्यूजिक भी यादगार रहा। ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए’ आज भी रेडियो पर बजता है और आंखें नम कर देता है।