फास्ट फूड के दौर में जब लोग बीमारियों से परेशान हो रहे हैं, तब देश की नई पीढ़ी जवाब ढूंढ रही है अपने अतीत में। दादी-नानी के पुराने नुस्खे, अब फिर से बन रहे हैं हेल्थ मंत्रा। क्या है इस ‘पुरानी जड़ों की नई वापसी’ की कहानी? देखिए ये खास रिपोर्ट
नारियल का तेल, सरसों का तेल, हल्दी वाला दूध, मिट्टी के घड़े का पानी, नाभि में सरसों का तेल, रात्रि को तिल का तेल लगाकर सोना- ये सब बातें कभी गांवों तक सिमटी थीं लेकिन अब नई पीढ़ी फिर इन्हें खोज रही है। अब स्किन के लिए फेस पैक नहीं, बेसन और दही का लेप लगाना लोग पसंद कर रहे हैं अब पेन किलर नहीं, अदरक और लौंग का काढ़ा आ गया है वापस।

जीवनशैली का हिस्सा थे देसी नुस्खे-
पहले के समय में इतने संसाधन नहीं थें अस्पताल भी दूर होते थे लेकिन हल्दी, मेथी, आंवला और नीम पास रहते थे। अब बच्चे भी वही पूछते हैं।” गूगल पर ‘घरेलू नुस्खे’ की सर्च में पिछले 2 साल में 40% की बढ़ोतरी। इंस्टाग्राम पर #DesiNuskhe जैसे हैशटैग पर लाखों व्यूज़। आयुर्वेदिक और ऑर्गैनिक प्रोडक्ट्स का बाज़ार भारत में 2025 तक ₹70,000 करोड़ को पार करने की संभावना। वहीं एक्सपर्ट्स की माने तो “पुराने नुस्खे सिर्फ इलाज नहीं, जीवनशैली का हिस्सा थे। इनसे साइड इफेक्ट नहीं होते। नई पीढ़ी अगर इन्हें आधुनिक जीवन में सही तरीके से जोड़े, तो बहुत लाभ मिलेगा।”
जड़ों को समझना है ज़रूरी-
कई बार हल दिखता है वहीं, जहां से हम चले थे। दादी-नानी की वो बातें जो कभी ‘पुरानी’ मानी गईं, अब साबित हो रही हैं वो ही असली साइंस हैं। “जिन नुस्खों को कभी गांव की पुरानी कहानियों में सुना जाता था, अब वही बन गए हैं हेल्थ की नई परिभाषा। और शायद यही सही मायनों में ‘आगे बढ़ना’ है- जब हम अपनी जड़ों को समझते हुए भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं।”