आज रेट्रो रिव्यू में हम बात करेंगे उस फिल्म की जिसने भारतीय सिनेमा की परिभाषा ही बदल दी एक ऐसी फिल्म जो न केवल बॉक्स ऑफिस पर बल्की दिलों पर भी राज करती रही। 1960 में बनी के. आसिफ की ऐतिहासिक फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ आज भी शाही भव्यता, इश्क और बगावत की सबसे बेहतरीन मिसाल मानी जाती है।
प्रेम और विद्रोह की कहानी-
मुग़ल-ए-आज़म की कहानी है मुग़ल शहज़ादे सलीम और एक दरबारी अनारकली की मोहब्बत की लेकिन यह फिल्म सिर्फ प्रेम कहानी नहीं थी ये थी एक साम्राज्य के खिलाफ मोहब्बत की जंग, अकबर और सलीम के टकराव में राजशाही और इंसानियत दोनों की परीक्षा थी।
किरदार जो इतिहास बन गए-
दिलीप कुमार ने शहज़ादे सलीम के किरदार को ऐसी नज़ाकत और गहराई से निभाया कि वो एक मिसाल बन गया। मधुबाला ने अनारकली के रूप में मोहब्बत की सबसे खूबसूरत तस्वीर पेश की जो दर्द, समर्पण और अद्भुत सौंदर्य का मेल है और पृथ्वीराज कपूर के अकबर को देखकर आज भी राजशाही की असली झलक मिलती है।
वो संवाद जो गूंज बन गए-
“हम अपने बेटे के धड़कते हुए दिल के लिए हिंदुस्तान की तकदीर नहीं बदल सकते”, “मेरा दिल आपका हिंदुस्तान नहीं जिस पर आप हुकूमत करें” हर डायलॉग मानो दिल के आर-पार हो जाता था थिएटरों में तालियां रुकती ही नहीं थीं।
तकनीक और कला का शिखर-
काले-सफेद युग में बनी इस फिल्म का एक गाना “प्यार किया तो डरना क्या” टेक्नीकली और विज़ुअली इतना शानदार था कि बाद में जब यह फिल्म रंगीन में री-रिलीज़ हुई, तब भी दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी।
रिकॉर्डतोड़ सफलता-
‘मुग़ल-ए-आज़म’ उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी और उतनी ही ज़्यादा कमाई भी कर गई। इसे 20 सालों तक दोहराया गया और आज भी इसका नाम सुनते ही भारतीय सिनेमा का गौरव याद आता है। “‘मुग़ल-ए-आज़म’ सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, वो एक सपना था जिसे आसिफ ने 10 सालों की मेहनत से पर्दे पर उतारा। ये फिल्म आज भी बताती है कि जब सिनेमा दिल से बनाया जाए, तो वो इतिहास बन जाता है।