इनकी आवाज़ में है सूफ़ियाना रंग, और जज़्बातों की गहराई ऐसी कि सीधे दिल में उतर जाए। जी हां, आज है उस फनकार का जन्मदिन, जिन्होंने ‘तेरी देवाानी’ से लेकर ‘अल्लाह के बंदे’ तक, हर दिल को छू लिया कैलाश खेर। आइए जानते हैं, कैसे एक संघर्षशील लड़के ने बना ली अपनी आवाज़ से पूरी दुनिया में पहचान।
बचपन और संघर्ष-
उत्तरप्रदेश के मेरठ में 7 जुलाई 1973 को एक कश्मीरी हिंदू परिवार में जन्मे कैलाश खेर का बचपन बेहद साधारण रहा। संगीत से लगाव बचपन से था लेकिन ना कोई गुरू, ना ही कोई संसाधन। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की ट्रेनिंग के लिए अकेले ही सफर शुरू किया। दिल्ली की गलियों से लेकर मुंबई के स्टूडियो तक, ये राह आसान नहीं थी।

बॉलीवुड ब्रेक और पहचान-
2003 में फिल्म वैसा भी होता है में ‘अल्लाह के बंदे’ ने उन्हें पहली बार पहचान दिलाई। इसके बाद तो उनकी आवाज़ हर संगीतप्रेमी की ज़ुबान पर चढ़ गई। ‘तेरी देवानी’, ‘सैंया’, ‘बम लहरी’, ‘जय हो’ जैसे गाने आज भी दिलों पर राज करते हैं। सूफी, फोक और रॉक का जो मेल उन्होंने रचा, वो आज भी अनोखा है।
आध्यात्मिक झुकाव और व्यक्तित्व-
कैलाश खेर केवल गायक नहीं, एक आध्यात्मिक आत्मा भी हैं। उनके गानों में भक्ति और दर्शन की झलक मिलती है। चाहे ‘ओम नमः शिवाय’ हो या ‘बम लहरी’, वो संगीत को साधना मानते हैं। निजी जीवन में वो सादगी और आत्मिक सोच के लिए जाने जाते हैं।”
इंटरनेशनल स्टेज पर परफॉर्मेंस-
कैलाश खेर ने न सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका, यूके, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में भी अपनी आवाज़ से समां बांधा। उन्हें ‘पद्मश्री’ से नवाज़ा जा चुका है और कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है।
संगीत की इस सूफियाना रूह को आज हम उनके जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनाएं देते हैं। उनकी आवाज़ और उनकी रूह से निकली धुनें यूं ही हम सबके दिलों को छूती रहें। कैलाश खेर को हमारी टीम की ओर से जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई।