“वो सिर्फ एक फिल्म नहीं थी वो एक देश की आत्मा थी। जब भारत आज़ाद हुआ तब एक फिल्म आई जिसने हमें हमारे गांव, हमारी मां, हमारी मिट्टी और हमारे संघर्ष की पहचान दी। नाम था मदर इंडिया। नर्गिस, सुनील दत्त और राजकुमार की इस फिल्म ने नारी शक्ति और बलिदान की जो मिसाल पेश की, वो आज भी भारतीय सिनेमा में अमर है। आइए लौटते हैं उस दौर में, जब सिनेमा, समाज का आईना था…”
कहानी की नींव-औरत, ज़मीन और ज़िंदगी-
मदर इंडिया की कहानी एक ग्रामीण भारतीय महिला राधा की है, जो अपने पति के बिना अपने बच्चों को पालती है। गरीबी, सूखा, ज़मींदार का अत्याचार हर मुश्किल से लड़ती राधा, अपने आत्मसम्मान और सच्चाई से कभी समझौता नहीं करती। वह सिर्फ एक मां नहीं, पूरे देश की प्रतीक बन जाती है।
राधा की ममता और संघर्ष-
फिल्म में गरीबी और शोषण का ऐसा चित्रण है, जिसे दर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं। यूं तो मदर इंडिया का हर सीन अपने आप में यादगार सीन है लेकिन चंद सीन्स का यहां ज़िक्र करना ज़रूरी हो जाता है। फिल्म में एक सीन है जिसमें बाढ़ के बाद छोटा बच्चा भूख से बेहाल होकर ज़मीन से जड़ निकालकर खाने लगता है। इसके अलावा भूखा होने के बावजूद मां के कहने पर लाला के दिए हुए चने को फेंक देने वाला दृश्य।
साल 1957 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में नरगिस ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म में राजेंद्र कुमार और सुनील दत्त ने नरगिस के बेटों का रोल निभाया था, जबकि राज कुमार नरगिस के पति के किरदार में दिखे थे। फिल्म के यादगार किरदार सुखिलाला के रोल में कन्हैयालाल दिखाई दिए थे। खास बात ये है कि ये पहली भारतीय फिल्म थी जो ऑस्कर में नॉमिनेट हुई थी लेकिन खिताब से चूक गई थी।
तकनीक और कला में क्रांति-
फिल्म का निर्देशन किया महबूब खान ने जो इस फिल्म के ज़रिए भारतीय सिनेमा को तकनीकी और भावनात्मक ऊंचाइययों पर ले गए। रंगीन सिनेमेटोग्राफी, भव्य सेट्स और दिल को छू लेने वाला संगीत हर पहलू में मदर इंडिया एक क्रांति थी।
गाने जैसे –“दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा…” “दुख भरे दिन बीते रे” “घूंघट नहीं खोलूंगी सइंया” आज भी प्रासंगिक हैं।
फिल्म की कामयाबी और इतिहास में स्थान-
मदर इंडिया भारत की पहली फिल्म थी जिसे ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म श्रेणी में। इस फिल्म ने दिखा दिया कि भारतीय नारी सिर्फ घर की नहीं, देश की रीढ़ है। राधा के किरदार ने नर्गिस को अमर बना दिया और सुनील दत्त और राजकुमार की भूमिकाएं भी आज तक याद की जाती हैं।
“मदर इंडिया सिर्फ एक फिल्म नहीं थी वो एक भावना थी, एक परंपरा थी और एक सोच थी। आज जब हम नारी सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय और मातृत्व की बात करते हैं तो मदर इंडिया की राधा हर चर्चा में जीवित नज़र आती है। शायद इसीलिए कहा गया फिल्में तो बनती हैं लेकिन मदर इंडिया जैसी सिर्फ एक ही होती है।”